प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीने हरियाणा के रोहतक रैली में कांग्रेस को लेकर तंज कसा। उसके बाद से ही कांग्रेस के भविष्य को लेकर कुछ चिंताएं, सरोकार और जिज्ञासा भरे सवाल आने लगे। कहने की जरूरत नहीं है यह समय ऐसा है जब सफलताएं थोड़ी सी असफलता से मुरझा जाती हैं और असफलताएं थोड़ी से सफलता से छिप जाती है। उदाहरण के तौर पर गुजरात में विधानसभा चुनाव है। यहां भाजपा एक बार फिर से सरकार बनाने में कामयाब रही। इसके बावजूद कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया। राहुल गांधी एक सीरियस नेता बन कर उभरे। इसके बाद कांग्रेस ने कर्नाटक में सरकार बनाई, तीन और राज्यों में भी सरकार बनाई। लेकिन लोकसभा चुनाव में जिस तरह की पराजय हुई। लोग यह नहीं समझ पाए कि राज्य की आकांक्षा और केंद्र की आकांक्षा अलग-अलग होते हैं। लोगों ने उसे राहुल गांधी की पराजय माना। खुद राहुल ने भी माना शायद इसीलिए उन्होंने कहा कि वो पार्टी की सेवा तो करते रहेंगे लेकिन अध्यक्ष नहीं रहेंगे। अब सोनिया ने एक बार फिर से पार्टी की कमान संभाली। याद रखना होगा 90 के दशक में भी जब कांग्रेस की स्थिति खराब हुई तो सोनिया ने पार्टी को संभाला। उन्हींके नेतृत्व में यूपीए ने दस साल तक हुकुमत की। 12 तारीख को कांग्रेस महासचिव की बैठक है। लोगों को लग रहा है बैठक में शायद कोई बड़ा फैसला होगा, लेकिन अभी उस पर बात करना सिर्फ कयास लगाना ही होगा। कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या ग्रैंड ओल्ड पार्टी का सिस्टम सुधारना है। पुराने जनाधारविहीन नेता पार्टी का चेहरा बन गए, जमीन पर ना लड़ने वाले नेता की कमी है। राहुल जब चुनाव में उतरे तो उन्हें भी लगा कार्यकर्ताओं की कमी है। यही नहीं यूपी में जब कांगेस ने अखिलेश के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो परिणाम आने के बाद ही अखिलेश ने संबंध खत्म कर दिए। अखिलेश को लगा कि हमारे कार्यकर्ता तो उनकी मदद कर रहे हैं लेकिन उनके कार्यकर्ता हमारे काम नहीं आ रहे हैं। इसलिए कांग्रेस को सबसे पहले जरूरत कार्यकर्ताओं के हुजुम खड़ा करने की है। ये बात सच है हमने भाजपा को धीरे-धीरे उभरते देखा है, क्षेत्रीय पार्टियां भी संघर्ष करके खड़ी हुई हैं। कांग्रेस अगर सही रास्ते पर चले तो पार्टी फिलहाल मोदी-शाह की जोड़ी को परास्त ना कर सकें लेकिन अपनी जगह बना सकती है।
सोनिया गांधी के सामने तीन प्रमुख समस्याएं हैं। पहला पार्टी के अंदर का ढांचा ठीक करना, दूसराबिगड़ैल सहयोगियों को कब्जे में लेना और तीसरा कार्यकताओं में जोश भरना। पार्टी ने एक अच्छा प्रयोग किया है। हरियााणा,महाराष्ट्र और झारखंड में नए प्रदेश अध्यक्ष बनाए है, इन्हें जातीय और स्थानीय समीकरण को ध्यान में रखकर बनाया गया है। ये अगर प्रदेश अध्यक्ष अच्छा काम करेंगे तो पार्टी को फायदा होगा। पार्टी को पूरी तरह संघर्ष करना है। अगर सोनिया गांधी एक बार फिर से पार्टी को खड़ा करने में सफल हो जाती हैं तो वो एक ऐसा इतिहास रचेंगी जो भारत की आजादी के बाद बहुत कम लोगों को नसीब हुआ है। यह भी पढ़ें-कुछ दशकों से राजनीति में चल रहा शह-मात का खेल: देखें शशि शेखर का VIDEO ब्लॉग यह भी पढ़ें-कश्मीर में मोदी सरकार की कोशिशें और गुत्थियां: देखें शशि शेखर का VIDEO